Wednesday 17 February 2016

मैं सोया अँखियाँ मींचे


कभी किसी को क्षमा देना
तो मुझे आता नहीं था
और वीर भी बनना था
फीर एक नया सुभाषित :
'आलस्य वीरस्य भूषणम्'
मैंने ख़ुद बना लिया
और वीर बन गया !
स्कूल में दोस्तों ने भी
यही तो सीखाया था :
आज करे सो कल कर
कल करे सो परसो...
ये मुझे बड़ा अनुकूल लगा
और मैं हुशियार भी बहुत था
आगे दो लाइनें अपनी जोड़ दी :
परसो करे सो कभी मत कर
अभी सो जा कुछ अभी मत कर !
बड़े लोगो की सीख भी
मैंने इस तरह दिमाग में उतारी
कि दिल को तसल्ली हो
और आत्मा को सुकून मिले
जैसे चाचा नेहरु का उपदेश :
'आराम ही राम है'
मैं बस आराम करता रहा
आलस्याभूषण पहनकर
विश्राम करता रहा....
इसी विश्रान्ति में ये ख़बर न रही
जो लड़की बहुत पसंद थी
उसकी कब शादी हो गई !
सोते सोते गुज़र गई रात रे
दिन भी पलक झपक निकल गये
अवसरों से लदे जहाज गुज़र गये
दूर से अपनी चमक दिखाकर
हीरा पन्ना ओ पुखराज गुज़र गये
क्युँ कि सोने से ज़्यादा
मुझे सोने में दिलचस्पी थी
कभी मैंने ईश्वर से मांगा भी यही होगा :
नींद से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फीर चाहे दिन आधा कर दे या अल्लाह ||

2 comments:

  1. Jo sovat hai so khovat hai jo jagat hai wohi pavat hai
    its awesome creation

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  2. @ Pooja
    Thanx for appreciation.

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